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फुटकर कवित्त ... कौस्तुभ मणि नहीं काय, जिका बहु मोलख होती॥ चलवंत लख जोधा नहीं नहीं दानदाता जकां । । जिनहर्ष थोक एतां गयां, सतयुग तो जातां थकां ॥ .
सुन्दरी स्त्री सुन्दर वेस लवेस अनोपम सोवन वान धनी सुघराई । चौसठि नारि कला गुन जानत हंसनितं वनि चालि हराई।। छैल छबीली सुहागिण नारि सू कोकिलकंठ सू सोभ सवाई। . कहै जसराज इसी त्रिय होत मनो निज हाथ चिरंचि उपाई॥
. राधाकृष्ण उमटी घनघोर घटा मन की तन की किहुँ पीर कहूं ॥ मोहि श्याम विना अकरात तना विजुरी चमकै अव कसे सहे। ऐसी पावस को निस जीवनही बसि कैसी सहेली इकेली रहूँ। जसराज राधा व्रजराज की जोरि, ज्यं जोरि करूँ अब जोरि लहूँ। तेरैहि' पाय पलं मोय छोड़ दै कान रे पाणि कुंजांण दे मोहि अवै ।
मेरी सासू विलोकत है' समझो मेरी हासि करेंगी नणंद सबै ॥ , तेरे ही मन भायो सोई मन मेरे ही आतुर कामन होत कबै । जसराज तेरो हूं तेरे ही आधिन • हूँ आई मिलूगी कहौगैतवै॥
यौवन जोवन में राग रंग, अंग चंग जोवन में रूपरेखा मेख सुविचारिहै।
१ तुहि २ हासिवूझनहीं ३. अरी मो मनि भायो सतायो है मोरै रि ४ कहै भईया तेरी अधानसुं