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जिनहर्ष ग्रंथावली
बीजुलियां खलभल्लियां, आभै आभै कोड़ि |
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कढ़े मिलेस सजना, कंचू की कस छोड़ि ॥१७॥ - बीजलियां गली बादला, सिहरॉ माथै छात | कदे मिलेसुं सज्जना, करी उघाड़ौ गात ॥ १८ ॥ बीजलियां चमके घणी, आभइ आभइ पूरि । कदे मिलूंगी सज्जना, करि के पहिरण दूर || १६ | बीजलियां खलभल्लियां, ढाबा थी ढलियांह | काठी भीड़े चलो, घण दीहे मिलियांह ||२०|| फुटकर कवित्त
पंचम प्रवीण वार, सुणो मेरी सीख सार, तेरमो नखत्त भैया नौमी रासि दीजिये । ईहण आये तें द्वारि, मातन कौं तात छारि, तातनकौं तात किए, सुजस लहीजिये || तीसरी संक्रान्ति तू तौ, दसमीही रासि पासि, कुगति को धर मॅनू, चौथी रासि कीजिये । पर त्रिया धिया रासि, सातमी निहारि यार, जिनहर्ष पंचमी रासि, ऊपमा लहीजिये ॥१॥ सतयुग के साथ गये
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रयणि खाणि नहीं काय, नहीं वावन्ना चन्दन | नारि नहां पद्मिणी, नहीं आंकुरित कुंदन ॥ पाणीपंथा अश्व नहीं, सीस गयवर नहीं मोती ।
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