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बरसात रा दूहा
४२३ आजूणी निशि एकलां, जासी क्युं जसराज ॥६॥ पावस रुति झड़ मंडियौ, चातक मोर उल्लास। . . वीजलियां झवकै जसा, विरही अधिक उदास ॥७॥ झड़रूपी पावस झरै, विरह लगावै वाण ।' ऊंडो गाजि गद्दकियौ, जसा लिया मुझ प्राण ॥८॥ भरि पावस सयणा पसे, ऊल्हरियौ जसराज । जाणुं छु ले जाइसि, काढि कलेजौ आज ॥६॥ - ऊंडौ गाज्यौ धुर खिव्यौ सहीज वरसणहार । जाय मिलीजै सजना, लांबी वाँहि पसार ॥१०॥ जिण दीहै पावस झरे, नदी खलक्कै नीर।' तिण दीहै कीजै जसा, सजनियां सू सीर ।।११।। चिहुं दिशि जलहर ऊनम्यौ, चमकी वीजलियांह। इण रुति सयण मिलै जसा, तो पूगै मन रलियांह ॥१२॥ वीजलियां झवकै जसा, काली कांठल . मांहि । आवि सनेही साहिवा. योवन रा दिन जांहि ॥१३॥ वीजलियां झारोलियां, चमकि डरागै मोहि । आवि घरे सजन जसा, हं बलिहारी तोहि ॥१४॥ बीजलियां बहुली खिवै, डावा डूंगर मज्झ । गला उतारे कंचूऔ, नयणे लोपी लज ॥१५॥ आज अवेलौ उनम्यौ, मयडी ऊपरि मेह। । जाउं तो भीजै कंचूआ, रहूं तो तूटे नेह ॥१६॥