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________________ ४२६ जिनहर्प ग्रंथावली खेलवो खिलाइयो, शरीर स धुलाइबो, कमाइगो भि जोवन में। जोबन में देस परदेस फिरै सारिसेवी संग यारिहै । कहै जसराज जोवन में ध्रमध्यान ज्ञान मान जोवन की वातघात न्यारीहै ॥१॥ रागिनी स्त्री लोयण भरि निरखंत, काम मुख कथा वखाणे । आंगुलीयां मोडंत, कहै मन रीस (न) आणे । आलस भांजै अंगि, कठिन कच उदर दिखावै । सखी कंठ करि पासि, घालि निज हस हसाचे । सुकमाल बाल भीड हीय, वाइक मिट्ठ वखांणीय । जिनहरष कहै त्री रागिनी, इण आचरणे जाणीयै ॥१॥ उरसीउ उरसीउ आणि हे सखी, सूकड़ि घसीइ जेणि । विरह दाधी प्रेम कौ, अगनि वुझा जेणि ॥१॥ मैं जाण्यौ तुं जाण छै, पणि तुं बड़ी अजाण । मैं उरसीयौ मंगीऊ, 6 आण्यौ पापाण ॥२॥ मानिनी वर्णन महल्ला मालियां, जोति मै जालीयां । सुचित्र सुंहालीयां, ओपमा आलीयां । ढोलीयां ढालीयां, - सेझ सुहालीयां । ।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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