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फुटकर दोहे
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वनिता इक धन वसै सरल पत्रली सचाली | तीन चरण तसु नाम नगर पैसती निहाली || चतुर नरां कर चढी चपल चालै चंचाली पांणी पी परिहरे पाव पिण न चलै पाली || कानसं आय वातां करें निनग चीर पहिरे नहीं । जिनहर्ष कवित इणपरि जपै सुगुण अर्थ कहिज्यो सही ॥५॥ उतपति तो आकास वसै उरध दिसि वासो । निरमल गंगा नीर तासु मुख कृष्ण तमासो || कामणि संग करूर, सदा निति र समुरो | असैन पॉणी अन्न पुहवि जस ग्राहक पुरो | अरि काल रूप भंज इला विहाग जेम तातो वहै । जिनहर्ष लहै सावासि सो जिको अरथ साचौ कहै || ६ ||
सीह लंक नहीं संक चीर बकौ वेढालौ । फिरै जोर बल फौरं दुतौ रंढालौ ॥ गैवर सीस गिरीस वीस वीसवा चंचालौ । फिरै डाड मुँह फाड जाड करडी तनु कालौ || धरणी घणी नांखे धडछि पट चरणे मरणे खिसे । जिनहर्ष सुभट कुण जालमी उलखिज्यो आरख इसे ||७||
नान्हडीयो नर एक चोर मैं निरख्यौ नयणे ।
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कासूं वयणे ॥
घक नै धकली कहाँ गुण नवखंड मोटो नाम जासु सह कोई जाणै ।