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________________ ४२० जिनहर्प ग्रन्थावली आरखां नाम तिहुँ अखरे कला तास जाणे न को। .. जिनहरप पुरप कुण जालमी तुरत नाम कहिज्यो तिको ॥१॥ उड़े मग आकास धरणि पग कदे न धार। । पीवे अह निसि पवन नाज नवि कदे आहारै' । सुकलीणी संदरी वप्प सिणगार विराजै । . . . . जीव विहणी जोइ जिलै' नेहागलि जाजै ॥ काठ सुं प्रीति अधिकी करै पंख चरण करयल पखे । जसराज तास साबासि जपि अरथ जिको इणरो लखै ॥२॥ एक नारि असमान दिट्ट विण पंख चढ़ती । - - चावा सोंग चियार मिलै ताह अंग मुडंती ।। पाछलि पूछ पतंग गीत : गुणवंती गावै। . नाज भखै निरलुख नीरं दीट्ठौ न सुहावै ।। करमज्झ जीव झाले अमर छोड़ दीयै तौ जाय मर । जसराज कहै नारी किसी कहो अरथ सुजाण नर ॥३॥ वसै नगर विधि वडी ..दिस च्यारे दरवाजा। सोले पायक सूर रहै तिण में त्रिण राजा।। .. गिणि छिनें मिलि गाम च्यार पायक चौवीसां ।' : राय हुकम रिण खेत मरै माहो मैं रीसा ॥ . आणीजै घरे. ऊपाडि नै, ऊठि चलै वलिउ इसो । जिनहर्ष अचंभो. जोइज्यो कवण नगर कारण किसो ॥४॥ १ निहारइ २ झिलै ३ मामै ४ चरण नहीं मुख कर पखै ५ कवित्त।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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