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फुटकर दोहे .
दस दुवार को पींजरो, तामै पंछी पौन । रहण अचूँबो है जसा, जाण अचूंचो कौण ॥४॥ पहिली प्रीति लगावतां, पटू (छ ?) न कीधो वोय । अब वीछड़ो ना सजनां, न्याई छ ( झ १) गड़े होइ ||५|| सजन तब लग वेगला, जब लग नयणे न दिट्ठ | वीछडियां यह अंतरो, पंजर मांहै पड़ठ ॥ ६ ॥ एक ही दीपक के कीई, सगरे नवे निधि होय । तू नमे नह कहां छीपै, जहां हग दीपक होइ ॥ ७ ॥ जो हम ऐसे जाणते, प्रीति वीचि सही ढंढेरो फेरते, प्रीत करो मत वीछडता ही साजना, न उर पेपरी सी वहि गई, उभल के रहे सजन युं मत जाणीओ, वीछरयां प्रीति घटाइ | व्यापारी के व्याज जु, दिन दिन वधती जाइ ॥१०॥ प्रहेलिका पट जास
दुख होड़ | कोई ॥८॥
लगा तीर ।
सरीर ॥ ६ ॥
नर एको निकलंक वदन
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रसण इग्यारह रूप जगत में वड़ हथ दोड़ हाथ पग दोइ वले ताइ लोचन
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पुंछ एक वलि पुठ ईला
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चखाणां ।
जाणां ॥
बारह 1
जस वास अपारह ॥
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* इनके अर्थ :- १ सुपार्श्व । २ ध्वना । ३ गुड़ी । ४ चौपड़ ।
५ लेखण । ६ मेह । ७ मकोड़ी, ८ खटमल । ६ कीड़ीनगरौ ।
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