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जिनहर्ष ग्रन्थावली वाइस वाल्हा सेलणौ, अम्मा बोले आज । साजणिया मिलसी सही, जाणू छु जसराज ॥८॥ सज्जन तो कारण सदा, कोड़ि उड़ा काग । करि शीतल काया जसा, आइ बुझाइ डाग ।।८२॥ तन धन जोवन ताकतां, नीठ जुड्या जसराज। माण काई न माण रा, आई महल्ले आज ||८३॥ .
सोरठासाजन गया सम्बाहि, ज्यां सं प्रीति, ती जसा । मकरि मकरि मन मांहि, अवरां मुं हिन आमनौ ।।८४॥ साजनियां संसार, मिलेतो कीजइ मन समा । दिन में दस-दस वार, जोतां नित नवला जसा ।।८|| सज्जनियां सहु को करौ, एको न करूं अहे जसा । हेकर मौ सुख होई, वेदन बीछड़ियां पछै ।।८६।। विरहणी विरह निवारि, आवै ने अण चीतरो । हियड़ें हैज धरेह, मोके तूं मिलज जसा ॥८७॥ . मन मिलियौ सयणांह, तन मिलियौ नहीं तरसतां । निरखि-निरखि नयणांह, जलणि हुवै विवणी जसा ।।८८॥ निगुणां सेती नेह, थिरन रहै कीयां थकां। . छीलर सर ज्युं छेह, जल जातौ दीस जसा ॥८६|| १. पर । २ हिव । ३ साजनियां सहकोई, करो अम्हे नकरां जसा । ४ लागौ।