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________________ प्रेम पत्री रा दूहा * सुख पामेस्यै सैण, आयां लेस्युं वारणा ॥ ७० ॥ प्राण सटें ही प्रीत, जुड़ती जो दीस जसा | आदरि रूड़ी रीत, मति छोड़ मतवंतं तूं ॥ ७१ ॥ कहिसी कोड़ि वचन्न, अति आसंगा ऊपरे । सहु खमिसी साजन्न, वाल्हा कदे न विरंचसी ॥७२॥ लाखीणौ सुणि' लेख, वले न रीझे वाचतां । सो साजन सुविवेस, जाणै पसु ढांढौ जसा ॥७३॥ तन हुंती तजि धेख, मो कहियौ हित मानिजो । लिखजो सज्जन लेख, जुग लगि प्रीत हुमी जसा ||७४ || नेहालू नजरांह, जोइ कामण परहत्थ जसा । निरही पारेवाह, तारा हूं तूटे पड़े ॥७५॥ देखि सुरंगी डाल, जांणुं जाइविलगूं जसा । आस करूं हूं आलि, करम विना मिलवौ कठड् ||७६ || चिति मिलवा री चाह, रात दिवस अलजौ रह | आऊं भुइ अवगाहि, जाणु सयण कन्हई जसा ॥७७॥ तूं बीछड़ियौ त्यार मन वीछड़ियौ माहरौ । लोग जायेह लार, जतन कियां न रहह जसा || ७८|| मोल पाणी लाज, साजन चीछड़ियां समी । जाई ल्याउं जसराज, कोई जो केथी कहइ ॥ ७६ ॥ चाइस उडी क्लाइ ल्युं, चाड अम्हीणी आज | सयण सकाजा आवता, जौ देखइ जसराज ॥८०॥ T t 1 + ४१५
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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