________________
४१३.
प्रेम पत्री स दूहा केही कीजै दुःख, केही आरति आणिय । सिरज्यां पाखै सुख, जिम तिमही न मिले जसा ॥५०॥ काइ कर अणराय, काइ मन पछतावौ करें। रहणहार थिर थाइ, जाणहार जायै जसा ॥५१॥ सुगुणै सैण कियोह, निगुणै मन मिलियौ नहीं। नरभव नीगमियौह, जसा सुपन ज्यूं रात रौ ॥५२॥ सूतां सुपनै आई, मन मेलू नितको मिले । जागं तां उठ जाइ, जतन कियां न रहै जसा ॥५॥ अगलूणा नहिं आज, आज अनेरी भांति रा । ज्यं जाउ जसराज, त्यं वेदल मन माहरी ॥५४॥ करी मन धीर करार, विलवे कांइ विरही थयौ । संयण न लही सार, जावण दे परहा जसा ॥५॥ सयणे न लही सार, तो पण मनड़ौ माहरौ । आतम तणा आधार, जीवीजै दीठां जसा ॥५६॥ अम्हे न करिस्यां कोइ, साजनियां सहु को करौ । फिर दुणौ दुःख होई, वेदन वीडियो पछै ॥५॥ । सयण तणां संदेश, जो कोइ केथे ही कहै । अंतर मिटै अंदेश, तो तन ताढक वापरै ॥५॥ प्रेम विहूणी प्रीति, जोइ मन न ठरै जसा । रस विण पानां रीति, रंग न आवे राचणौ ॥५६॥ . मेलू विण मिलीयाह, मनडौ क्युं मानै नहीं। .