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उपर्युक्त रामविजयजी के शिष्य वा० पुण्यशीलगणि के शि० वा० समयसुन्दरगणि के गिज्य वा० शिवचन्द्र गणि (शम्भूजी ) मी अन्चे विद्वान हुए है। इसी परम्परा में जयपुर के यति श्यामलालजी हुए जिनके शिष्य और खरतरगच्छ की भट्टारक शाखा के पट्टधर श्री जिनविनयेन्द्र सूरिजी बडे प्रभावशाली हुए जिनका दो वर्ष पूर्व स्वर्गवास हुआ है।
जिनहर्पजी की परम्परा-क्षेम शाखा में अनेक विद्वान हो गए हैं। उनके गुरुभ्राता आदि की परम्परा भी लम्बे समय तक चलती रही है जिनकी नामावली हमारे पास है, पर विस्तार भय से उसे नहीं दिया जा सका।
-अगरचंद नाहटा