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(११) नीसाणी अजितसिंह-सं० १७६३ ।
इनके अतिरिक्त मूर्ख सोलही, -छिनाल पचीसी आदि कृतियां . भी यापकी ही सभवित है। ४ सौख्यधीर (सुखा )-इनकी दीक्षा स० १७४६ माघ सुदि ११
बीकानेर में श्री जिनचन्द्रसूरिजी द्वारा हुई। ५ सोमराज ( श्यामा)- इन्हें श्री जिनचन्द्रसूरिजी ने स० १७४७
फा०व० ७ को बीकानेर में दीक्षित किया था। । ६ विद्याराज (वीठल)-इनकी दीक्षा भी उपर्युक्त सोमराज के साथ
हुई थी। . ७ सत्यकीर्ति ( सुन्दर )-इनकी दीक्षा स० १७५२ फाल्गुन वदी ५०
को बीकानेर में श्री जिनचन्द्रसूरिजी द्वारा हुई थी। ८ सजयकीर्ति (साऊ)-इनकी दीक्षा उपर्युक्त सत्यकीर्ति के साथ
ही हुई थी। मुकवि जिनहर्षनी के शिष्य सुखवर्द्धनजी (समाचन्द) हुए, जिन्हें वि० स० १७१३ वै० सु० ३ के दिन सिरोही में श्री जिनचन्द्रसूरिजी ने दोक्षित किया था। सुखवर्द्धन के शिष्य दयासिंह हुए जिनका गृहस्थ नाम डाबर था । इनकी दीक्षा स० १७३६ वै० व० १३ को नागौर में श्री जिनचन्द्र सूरिजी के हाथ से हुई थो। आपके शिष्य उपाध्याय रामविजय (रूपचन्द्र) वडे विद्वान हुए। इन्हें म० १७५५ मिती वैसाख मुदि २ वील्हावास में श्री जिनचन्द्रसूरिजी ने दीक्षित किया था। ये उपाध्याय क्षमाकल्याणजी के विद्या-गुरु थे। मापके बनाये हुए लगभग २८ ग्रन्थ उल्लेखनीय है। इनके सम्बन्ध में 'अनेकान्त' व 'सप्त सिन्धु' में प्रकाशित मेरा लेख देखना चाहिए।