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________________ प्रेम पत्री रा दूहों ४०४ मन मेलू न मिले जसा, बलि करि घालू बाथ । नीकलि जासी जीवडो, सही नीसासां साथ ॥१०॥ - पंजर मांहि पलेवणों, सयण गयो सिलगाय । बुझे न जा बुझाइयो, जोरै बधतो जाय ॥११॥ विरहै आतम' वीटीयो, मो मारेसी आज । साईना' संयणां भणी, जाइ 'कहे जसराज ॥१२॥ जो नडा हूंता जसां, सज्जन तां ससनेह । वीछडता वीसॉरीया, झटकि दिखायो छेह ॥१३॥ पसरे मनडो पवन ज्यं, सयणां मिलवा काज । पिण तन न मिले तरसतां, जीव क्यं जसराज ॥१४॥ जे सजन मिलता जसा, दिन में सौ सौ वार। . __ संदेसे सांसो पड्यौं, विच वन पड्या अपार ॥१५॥ मुझ हीयडो हेजालूओ, भाखर गिणे न भींत । मेलं सं मिलना जैसा, आचे जाइ अंचींति ॥१६॥ सयण संदेसा मोकलै, झिलता मी झेल । वैगा जो मिलीया नहीं, हुसी जसा कोई हेल ॥१७॥ हेल इंसी तो होण दे, पिण पछतावो एह । आवटसी युही हीयो, मैन' री मन में देह ॥१८॥ सजन सुंहणे राति रे, मो मिलीया मन हेज। जागि निहालूं ज्यं जसा, संनी दीसे सेज ॥१६॥ १. औतन २. संदेसोसैणां । ३ जसा । -
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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