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________________ ४१० जिनहर्ष ग्रंथावली सेजडीयां विण सजनां, अधिक अलूणी- आज। . आंखडीयां जल ऊवकै, जोवं ज्यं जसराज ॥२०॥ मन मेलू सुहणे मिले, ज्युं जागुं त्युं जाइ । । जीव जु तड़फड़ता जसा, इण विधि रयण विहाइ ॥२१॥ मनडो आयो माहरो, मुझ तीरे तजि लाज ।। सारी लेज्यो सज्जनां, जोइ - नई जसराज ॥२२॥ पहिली कीधी प्रीतडी, किण हिक सुख रै काज । । सुख सुहणे ही नां हूओ, जुड़ीयो दुख जसराज ।।२३।।.. सयणां सांई दे मिलं, बांहा. विन्हे पसार । ... आंखडीयां सं आरती, जीभां जसा जुहार ॥२४॥ · कोई बटाऊ कहि गयो, आसी सज्जन आज। , विरह गयो मन विकसीयो, जीव खुसी जसराज ॥२॥ मेलू माणस जो मिलै, जोवाडै जसराज । नैण मटक्के निरखतां कोडि सुधारें' काज ॥२६॥ . काम करू मनडो किहाँ, केथही भर्म क रक। प्रीतडीयां परवसि जसा, झुरै नैण निसंक ॥२७॥., हूं विल भरियै हीये, जयें नाम जसराज । . महिर करो मुझ ऊपर, आवि सनेही आज ॥२८॥ साजनीया सालै जसा, जेम - सरीरां' भाल । रोइ रोय दिन रातडी, लोयण कीधा लाल ॥२६॥ १ समारइ २. भडंजर।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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