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________________ ४०८ जिनहर्प ग्रंथावली प्रेम पत्री रा दूहा स्वस्ति श्री प्रभु प्रणमीय, सुखकर सिरजणहार । जपतां दुख नासै जसा, वारै विखमी बार ॥१॥ दुखीयां दुख भंजणं दई, अइयो आदि पुरुक्ख । जल थल महियल जपि जसा, सयणां मेलण सुक्ख ॥२॥ जसा कुशल जणाविज्यो; आपणड़ा मो आज । हीयडो सुणि हरपित हुवै, जिम चकोर दुरराज ॥ ३ ॥ हीयडो लीधो हेरिने, मन हेजालू मुज्झ । चेत जसा नहीं चित्त में, तरसै मिलवा तुज्झ ॥४॥ सयण तणा संदेसडा, आतम ना आधार। हीयडो' राख हटकिन, अहनिस : हरप अपार ॥५॥ हीयडो राखु हटकि ने, मन पिंजरै न माय । मिलूं जसा मन मेलूआं, जाणुं भेटु जाय ॥६॥ घट सयणां विण परघल, थिर न पड़े पग ठाह। नैणे नावै नींदडी, उर ऊमटीयो दाह ॥७॥ चाहतां चित्त चोरणां, हीय वस ज्यं हार। जोतां ते सज्जन जसा, कदि - मिलसी करतार ॥८॥ सजन आवि सुहामणा, रस मांणण जसराज । वतडीयां केइ वीनवां, उर ऊपन्नी आज ॥६॥ १. सांभलतां श्रवणे जसा
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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