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, जिनहर्ष ग्रन्थावली केइ सझे सिणगार अपार अणाइ दरपण वेस बनाई काजल नैण अनोपम सारत भाल तिलक की सोभ सवाई केइ सहेली के साथ विनोद स्यं गावत गीत रु नाचत काई माहि जसा विनु प्रीतम श्रावण मास की तीज अक्यारथ आई॥शा चोथी वितीत भई मोहि' प्रीतम कागद ही नित भेज न दीनौ मोहि संतावत मैण अहोनिसि वात' जगावत काम उगीनौ नैण झरे जल पावस काल ज्यं घाउ कलेजे करै, जिउ लीनौ चोथि करूँ जसराज महाव्रत जौ घरि आवै तौ नाह नगीनौ ॥४॥ जा दिन तै अलि प्रांण धनी मुहि छोरि इकेलि विदेस सिधायो ता दिन तै न तंवोल भख्या न सरीर विषै घसि चंदन लायो रामति खेल विनोद तजे सब नारिन भूषण वेस बनायौ कौन जसा उपचार करूं अब पांचिम आई पै कंत न आयौ ॥॥ वीर वटाऊ संदेस कहुं तोही प्रीतम सु फुनि लेत सिधावौ लालच छाय रह्यो परदेस तहां जाइ कागद ले दिखलावौ मो मुख ते मुख तेरे संदेस जसा जाइ प्रीतम कुं समझायौ छहि को दीह अनीठ भयौ अब आय मिलौं अब क्यं ललचावो ॥६॥ जा दिन नाथ पधारयो गृहंगण वांटत हूं पुर मांहि वधाई प्रेम वियोग मिट्यौ तन अंतर प्रीतम सं मिल केलि मचाई
१. तो हि २. तिणि ३. बान लगावत ४. कियौ ५. आवत ६ पाइ पार ।