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हीयाली, पनरह तिथरा संवैया
४०३ सगा-सज्जनोपरि कवित्त :सरवर जल.तरु छांहड़ी, सगौ जु भंजै भीड़ । सजण सोई सराहीये, जाणे सुख दुख पीड़। जाणे सुख दुख पीड़, नहीं सो सजण केहौ। सो सरवर किणि काम, नीर ग्रीपम दै छहो ।। तरवर झड़ि मुड़ि जाउ, पंथि छाया नहु रंजै। सोई सयण अकयस्थ,भीड़ जौ किमही न भंजै॥.. दिल कूड़ सयण सरवर निजल, तरु छाया विण परिहरौ जसराज भीड़ि भजै नहीं, सगौ तिको किण कामरौ ॥१॥
- पनरह तिथ रा सवैया आज चले मनमोहन कंत, विदेश हठी मोहि छोरि इकेली कह्यो समझाय चल्यो परवा मत, मूकेगी स्याम विना तनु वेली तोइ न मांन्यो कथन्न सयन्न, वयन्न उथापि चल्यो री सहेली कहै जसराज रटै निसवासर, प्रेम परब्ब सनेह गहेली ॥१॥ दूज के घोर महोछब कीजत, दोनि 'निसापति सांझ 'समै घनघोर निसाण धुरै, पुर मंगल हींदु तुरक पच्छिमनमै परदेस संदेस न पाउं जसा, खिनय देखि चिसा दृग नयननमै मत मोहि बिसारि तजो विण दूषण चित्त तुम्हारै समीपि रमै॥२॥
१ देखि २. पिय देखि दिसा ग पान गर्म