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गणेशजी रो छंद गड. नीसांण सबद्ध गिरे घमसाण मच्यो उछरंग घरे ॥१४॥ चतुरांग सुरां दलि संचलिया, हिव साथ विनायक जी हलीया ।। मिल माहोमाही मतो मतीयो, लछि लाभ पिता मति साथ लीयो
॥१॥ घट ओघट घाट सहल घणं, गणपति रहो मकरो गमणं । सहू मेल्हि चल्या हरि जान सुरं, हेरम्बतरै हठ कोप करं ॥१६॥ करि रीस करामति फोरवीयां, कोइ जांण न पावे एम कीया फिरीणा निसि पाछो साथ फिरै, कर जोड़ी मनाय अरज करै॥१७॥ महाराज थया अम्ह मूढ मनं, पिण धोरी तू हिज धन्न धनं करुणा हिव दीनदयाल करौ, हठीयाल मनां सुं रीस हरो॥१८॥ लखि वार पगे नमि साथ लियो, कुमखे गणपत्ति अचंभ कियो । कहि केहा तुज्झ वखाण करां, सुर राय मानवी सीख सुरां ॥१६॥ महारुद्र तणौ सुत मोट मनं, धणीयाप धणी कर देह धनं । आतम थकी उपाय उमा, सरजीत करै थाप्यो सुरमां ॥२०॥ धरणी सिधि बुधि सुं प्रेम धणे, वर वींद थयो ज्यं इंद्र वणै । करि जोडि विन्हे नित सेव करै, उदियो बलवंत मुखां उचरै॥२१॥ लछि लाभ सऊजम वेइ सुतं, जसु नाम कह्यां लछि लाभ युतं ।
कहतां तो नाथ विधन्न कट, घट पाप खिणंतर मांहि घटे॥२२॥ __ सुर कोटि तेतीस नमति सदा, कोइ आंण न लोपे तुज्झ कदा ।
देवां चो आगेवाण दिपै, छल छिद्र सकोइ दूरि छिपै ॥२३॥ दुख भूतः दईत खईस डरं न लगै कोइ, रोग निरोग नरं ।