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________________ जिनह प्रथावली श्री थूलिभद्रमुनि स्वाध्याय ढाल || जाटणीनी ॥ पिउडा आवउ हो मंदिर आपणे, ऊभी जोऊं थांहरी वाट । तुझ विणि सूना हो मालीया, तुझ विणि मनमां ऊचाट || १ प || विणि अवगुण कांड परिहरी, वालंभ चतुर सुजाण । हुतर थांहरा पगरी मोजड़ी, माहरा जीवन प्राण || २पि || तुझ विणि निसि दिन दोहिला, जायइ वरस समान । नयणे आवे नहीं नींदडी, न रुचे दीठा जल धान ||३पि || नेह लगाई ने तुं गयउ, तेह दह मुझ गात । झूरि झूरि पंजर हुॅ थई, तुझ विणि दुखणी दिन राति ||४पि ॥ हवा निसनेही कां थया, कां थया कठिण कठोर । ३८० एतला दिन सुख भोगव्या, तुही न भीनी कोर ॥ ५पि || प्रीतम प्रीति न तोडीये, लागी जेह अमूल । सुगुणा केरी हो प्रीतडी, जाणि सुगंधा फूल ॥ ६पि ॥ दरसण दीजे हो करि मया, ल्यउ जोवन तन लाह । ए अवसर छे दोहिलउ, नागर सागर गुण तणा, कोस्या हरिखी मनमां प्रतिवोधी कोस्या कामिनी, करि चाल्या चउमासि । धन धन धूलिभद्र मुनिवरु, गुण जिनहरख प्रकासि ॥६पि ॥ हुं नारी तुं नाह || ७पि || थूलिभद्र आव्या चउमासि ।' घणुं, सफल थई मुझ आस || ८ || 2
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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