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३७ह
इग्यारह गणधर पद
इग्यारह गणधर पद
गरुआ गणधार ।
अनुपम
इग्यार ॥ १ ॥ प्रात० ॥ कहाय ।
प्रातसमै उठी प्रणमियै, गरुआ वीर जिणसर थापीया, इंद्रभूति' श्री अगनिभूति वायभूति व्यक्त" सुधर्मा" स्वामिसुं, रहीये लयलाय ||२|| || प्रा० मंडित मोरीपुत्रए अकम्पित' उल्हास | अचलभ्राता' आखियै, मेतार्य प्रभास" ॥३॥ प्राο ए गणधर श्री वीरना, सुखकर सुविसाल । थाहज्यो माहरी वंदणा, जिनहरख त्रिकाल ||४|| प्रा० इति इग्यारह गणधर पदं
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पं० सभाचंद लिखितं मुं० श्री किसनदासजी पठनार्थं ॥ श्रुतकेवली पद :
राग - भैरव
२
श्रुत केवली नमुं ग्रह समै, नाम लियंतां पातिक गमै ॥ श्रु० ॥ प्रभव सिजभव सुख दातार, यशोभद्र उत्तम आचार ॥श्रु०॥ श्री संभूतविजै सुविचार, भद्रबाहु पटकाय आधार || श्रु० || स्थलिभद्र ब्रह्मचार विख्यात, पट ( ६ ) श्रुत केवली एह कहात ॥ श्रु० मन सुध जपतां भव दुख जात, कहै जिनहरख पवित्र हुवैगात ॥ श्र० ॥ इति श्री श्रुत केवली पदम्