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________________ थूलिभद्र यारमासा गीत ३८१ ३८१ श्री थलिभद्र बारमासा गीतं दाल || माखोनी ॥ श्रावण आयउ वालहा, 'वरसे धार अखंड । साहिबीया इणि रिति सहु को घरि रहह, घरिणी सं हित मंडि ॥१सा।। कोश्या नारी इम कहइ, सांभलि थलिभद्र नाह ।सा। विणि अवगुण परिहरि गया, कां देई गया दाह ।सारको। भादरवु गाजे भयु, गयण न मावे बीज ।सा। ऊवट जल नदीयां बहह, निरखि निरखि मन खीज ॥सारको।। आसू आस्या पूरवउ, आ तन मेलउ घउ मुझ ।सा। कठिण वियोग न सहि सके, अरज करू छं तुझ माटको।। काती कंत घर आवीयउ, घरि घरि दीवा ओलि सा|| परख दीवाली तुझ बिना, मुझ केहउ रंग रोल साको।। मगसिर मासइं चमकीयं, टाढउ गाढर सीत सा|| पूरव प्रीति संभारी नइ, आइ मिलर मोरा मीत सापको॥ पोसइ काया सोसवी, सीत न सहणउ जाइ ।सा। नयण नावे नींदडी, जागत रयणि विहाइ साको माहई कोमल सेजडी, सूईयइ मिलि मिलि कंत । करीये मननी बातडी, पूरवीयइ मुझ खंति ॥साटको।। फागुण होली कीजीये, रमीये फाग उलास (सा। अबीर गुलाल उडावीये, कीजे विविध विलास साको चेत्रई नव पल्लव थई, सगली ही वणराइ ।सा।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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