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जिनहर्ष ग्रंथावली काई न हुवइ घरमाहे कुमणा, प्रहउठी श्री गौतम नमणा ॥२॥ अनमी नर पाए आइ नमइ, असई कीरति जगमांहि रमइ । सहु कोनइ जेहनउ सुजस गमइ, गौतम समरइ जे प्रात समइ ॥३॥ हयगय पयदल आगलि चालइ, बलवंता अरीयण दल पालइ । काई पीड़ा अंगे नवि सालइ, श्री गौतम सुख संपति आलइ ॥४॥ श्री वीर तणे वचने उचर्या, व्रत पंच घणइ उच्छाह धर्या । चउदे पूरव खिणमाहि कर्या, अठावीस लवधि भंडार भर्या ॥५॥ चढ़ीया अप्टापद गिरि उपरइ, चउवीस जुहार्या जिण सुपरइ । प्रतियोध्या तापस सय पनरइ, कर फरसइ केवलन्यान वरइ ।।६।। वसुभूति पिता पुहवी माया, इंद्रभूति नाम प्रणमुं पाया। गौतम-गौतम गोत्रइं पाया, कंचण चरणी दीपइ काया ॥७॥ पहिलउ चेलड श्री वीर तणउ, पहिलउ गणधर पिणि एह गिणड । गुरु ऊपरि जेहनउ प्रेम घणउ, श्री गौतम नउ कीजउइ सरणउ ॥८॥ सुविनीति भली रीतइ विचरइ, सहु प्राणी नइ उपगार करे। श्री वीर वचन निज रिदय धरइ, संसार जलधि दुख लहर तिरइ ॥६ सुरपति नरपति सेवा सारे, जसु महिमा भूमंडल सारइ । प्रभु जाण जपइ जे दिल सारे, मन वंछित तास तुरत सारइ ॥१०॥ घर घरिणी मन हरिणी लहीये, सुत दरसण देखी गह गहीयइ । श्री गौतमना जउ पग महीयइ, दिन-रात सदा सुखमां रहीये ॥११ मन गमता भोजन नित मेवा, घृत घोल तंवोल मिलइ मेवा । सुखमाहि झिलइ जिमगज रेवा, गौतमनी जउकीजह सेवा ॥१२॥