________________
गौतम स्वाध्याय
बलि वरस बार केवल वसे, जिनहरख कहै गोतम जयो, अंगूठे अमृत वसै, मुख करे भाव त्यां करें, निमिष मां केवल जाणी ।
वरस आऊ सहु वाणवै । मोख तणा सुख माणवै ॥ २४ ॥ मीठी वाणी ।
L
३७५
निवसै जेरै नाम, कामधेन कलपतर ।
,
चिंतामणि चित चाहि, आस पूरण अपरंपर । श्रीसोम वाणारिस सुख करण, सीस जपै जिनहरख जस ।
गणधार सार गोतम रा, कवित्त पच्चीस किया सरस ||२५|| इति श्री गोतम पच्चीसी सम्पूर्ण
}
नामे नव निध होय, कोइ गंजे नही केवा । पिसुण लगै लुलि पाय, नूर वाधे नित मेवा । साहण वाहण साज, राज रिधि अधिकी आपै । लोक लाज मरजाद, थोक सरला थिर थापै ग्रह ऊठी नाम लीघां पछी, लाभ लोभ लखमी मिलै । जिनहरख सदा गोतम जपो, विरुवा दुख जायै विलै ॥१॥
}
गौतम स्वाध्यायः
ढाल || विलस रिद्धि समृद्धि मिली || हनी
मन वंछित कमला आइ मिलइ, दुख दोहग चिंता दूरि टलड् । दुसमण लागु नवि कोइ कलह, गौतम नामइ सहु आसफलइ ॥ १ ॥ दिन प्रति उछरंग सुरंग घृणा, निर्घोष पडइ वाजित्र तणा ।