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जिनहर्ष प्रन्थावली
पनरहसै त्रय पेखि, पाय सह तापस प्रतिबोधे पारणो, जुगतिं परमांन्न परवरीयो परिवार, प्रेम सुं लागे पाये । कर धरूं सोई केवली, किम नहीं मो केवल सिरी । जिनहरख छैह आपण जड़, विन्हे हुस्यां वरावरी ॥ २१ ॥
जगगुरु वीर जिणंद, मरण जाण्यो मन
मांहे ।
सिद्धाये । चींतवीयो ।
गौतम मेल्ही गांम, सिद्धपुर आप समाचार सांभले, चित्त मांहे कैरो ही नहीं कोय, लाह विण युं हीलवीयो । मन माहि जांणीयो मांगसी, केवल हठ करि मो कन्है । जिनहरख कारिमो नेह करि, वीर समायो छेह चलि ||२२|| भलो कियो भगवंत, विटकग्यो केड़ छोड़ायो ।
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लारै मो लागमी, राडि करसि के रड़सी । बालक जिम बोलसी, काइ पालव पाकड़सी । वालीयो जीव गोतम वलि, वारू ज्ञान विमासियो । जिनहरख ज्योति जग चक्ख जिम, केवलज्ञान प्रकासीयो ||२३|| - केवल महिमा कीध, अमर सगला मिलि आया । आखै तहि उपदेश, अधिक प्रतिवोध उपाया । वसिया वरस पंचास, भोग गृहवास भोगवीया । वरस त्रीस बखांण, जुगति संयम जोगवीया ।
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पड़ीया ।
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जिमावे | ।
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