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________________ ३७७ श्री सुधर्म स्वाध्याय पहिरण वागा ओढण खासा, सिरि पाग जरी सोहइ खासा। घर मंदिर सज्या सुविलासा, तकीया सुकुमाल बिलु पासा ॥१३॥ गौ कामधेनु वंछित पूरइ, तरु कल्पवृक्ष चिंता चूरइ । मणि रयण गमइ दालिद दूरइ, गौतम नामे अधिकइ नूरइ ॥१४॥ गौतम-गौतम जे प्रातः जपइ, तेहना पातक क्षणमाहि कपड़ । घन करम भरम श्रम विगर खपइ, जिनहरख दिवाकर जिनप्रतपइ १५ श्री सुधम स्वाध्याय ढाल || श्री नवकार जपत मन रगइ || एहनी वीर तणउ गणधर पटधारी, नमीयइ सोहम सामिरी माई। 'महिमा सागर गुण वयरागर, लहीये नव निधि नामिरी माई ॥१वी।। गाम कोल्लाक तणउ जे वासी, धम्मिल विप्र सुजाण री माई । ‘स्मृति शास्त्र विद्यानउ पाठक, जाणइ वेद पुराण री माई ॥२वी।। तसु घरि नारि भदिला नामइ, तास उअर अवतार री माई । 'चउदे विद्या चतुर विचक्षण, चालइ कुल आचाररी माई ।।वी।। वरस पंचास तणे पंर्यतइं, वीर पासि तिणि वार री माई। आदर मुनि मारग आदरीयउ, पाम्यउ पद गणधाररी माई।।४वी।। त्रीस बरस प्रभु सेवासारी, छद्मस्थ पणे गुण खाणि री माई । चीस वर्ष वर केवल-पाल्यं, सत वर्षायु प्रमाण री माई ॥५॥ आठ वरस प्रभु सिव गत केडइ, पाल्युं केवल सार री माई । भव्य तणा संसय अपहरतउ, चरण करण भंडार री माई ॥६वी।।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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