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जिनहर्प प्रथावली ज्ञान सं जउ ए कल्याणक, दउढसउ आराधीयइ । विधई करीयइ तउ सही सं, मुगति ना मुख साधीयइ ।। एवडी मगसिर सुदि इग्यारसि, ए समी बीजी नहीं। जिनहरख मौनइग्यारिसी तप, जिन काउ मोटउ सही ॥२४॥
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गौतम स्वामी पच्चीसी धण पुर गुम्बर गांम, विप्र तिहां निवस गौतम । चवदह विद्या चतुर, अम्हां सम कोय न उत्तम ।। अङ्ग बड़ो अहंकार, अवर कोइ बीजो आछे । पंडित जांण प्रवीण पोहवि सगला मो पाछे ।। सहुगया हारि वादी सकज, सिद्धाइ जाणे सरख । जिनहरख सुजस सो त्रय जगत गोतम गरजे करि गरव ॥१॥ मेलि घणा ब्राहमण, इधक ओझाडधकाइ। हवै त्रिवाड़ी व्यास, ज्ञान विण हुआ घणाई ।। वेद भणे वेदिया, सहस भुज जाग सझाई । स्वाहा मंत्र सबद्द, ज्वालनल होम जगाई। करन्यास करै आहूति कर, दीयण बल देवां दिसे । जिनहरख धन्य गिणतो जणम, इन्द्रभूति इम उल्हसें ॥२॥ इण अवसर उपगार, करण आया करुणा कर। । गोठे केवलज्ञान, हलै साथै सुर हाजर ॥ .. ..