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मौन एकादशी स्तवन
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अनुक्रमि लीधउ जोग, छंडी सुख- संभोग । . . परीसह सहु सहइ ए, करम निवड दहइ ए ॥ ११ ॥ मगसिर मास उलास, सुदि इग्यारसि तास । प्रभु केवल वर्यउ ए, त्रिगढउ सुर कर्यु ए ॥ १२ ॥ तीन छत्र सुर सीस, चामर ढोलइ ईस । प्रभु देसण दीयइ ए, जाणुं निरखीयइ ए ॥ १३ ॥ श्रावक श्राविका जाणि, श्रमणी श्रमण वखाणि । गणधर थापिया ए, दुख सहु कापिया ए॥ १४ ॥ समितसिखर चढि नाह, संलेहण गज गाह । सिवपद पामीयउ ए, मइ सिर नामियउ ए॥ १५ ॥
ढाल ३ ॥ इणि अवसर दसउर पुरइ ॥एह नी कल्याणक तीन, मिथिला नगरी सुर पुरी । रहइ लोक अदीन, रिद्धि समृद्धि सूं भरी ॥ भरी सुभर कुंभ नरपति, राज्य लीला जोगवइ । परभावती राणी संघातई, विषय ना भुख भोगवइ ।। निसि समइ सूती सुखइराणी, चउद सुपना ते लहइ । । - बहु हरख पामी सीस नामी, राय नई आवी कहइ ।। १६.।। __ सुपन पाठक तेडावीया, कुंभराय प्रभाती।
पुत्र हुस्यइ तुम घरि सही, तीन लोक विख्याती ॥ वात विचारी नइ कही एहवी, सांभलि सहु मन मां हरखिया। स्त्री वेद लेई गरभ आव्या, करम माया ना कीया ।