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लिनहर्प अन्धावली मुगतिशिला उपरि रह्या, लोक नणइ अग्र भाग । भ० । अक्षय सुख आनंद नई, कोई न पामइ थागरम०।। गंध फरस जेह मई नही, नही कोई करम नउ लेप । म । गुण इकत्रीसे साभता, क्षय मंमार अछेप ।। ४भनी ।। सुक्ख अनंता भोगवे, सिद्ध भगवंत निरीह । भ । जिणि दिन सिद्ध निहालिमुं, ते जिनहरप सुदीह ॥५भ०वी
इति द्वितीय मंगल गीतं ॥२॥
तृतीय मंगल गीत । ___ ढाल-परि श्रावउ जी यावउ मउरीयउ ॥ हनी ॥ हिवे ब्रीजउ मंगल गाईये, माल्हंता मुनिवर हो। समता दरीया भरिया गुण, तप { कीधी क्रिस देहो ॥१हि॥ पांचे समिते समिता सदा, पांच व्रतना ज प्रतिपालो। पांचे इन्द्री निज वसि कीया, पट काय तणा रखवालो॥२हि०॥ त्रीजी पोरिसी करे गोचरी, ल्यइ अरस निरस आहारो।। सइतालिस दूपण टालिनइ, भोजन करे जे अणगारो ॥३हि०॥ धन्ना अणगार तणी परई, दुकर तप करे अपारो। . वावीस परिसह ज सहे, गुण ज्ञान तणा भंडारो॥४हि०॥ आपण परि परने लेखबइ, देखालइ शिवपुर वाटो। सुध साधु एहवा पाय प्रणमीये, जिनहरख सदा गहगाटो॥हि०॥
इति तृतीय मंगल गीतं ॥३॥