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श्री जिनहर्ष ग्रन्थावली
तरइपुर माझि वसइ, दूठ च्यारूं चोर रे,
राति धंस तेरउ धन, लूटइ ठोर ठोर रे ॥२ऊ०॥ काचउ कोट जोर जम-दल लीनउ घेर रे,
काहे बल फोरइ नहीं, गति समसेर रे ऊ० साहस सधीर धरि, प्रभुता न खोइ रे, कहइ जिनहरख ज्यु, जइत वार होइ रे ॥३ऊ०॥
(२५) प्रबोध
राग-कल्याण जोवन ज्युं नदी नीर जात हइ अयाण रे ।
काहे फूलि रह्यउ यउ तउ अथिर तुं जाणिरे ।जो०॥ जोवन मइ रातउ मदमातउ फिर जोर रे ।
काम कउ मरोयें कछु देखड़ नहीं ओर रे ॥१जो०॥ कामिनी सुं चाहइ भोग सकल संयोग रे।
अलप जीवन सुख वहुत वियोग रे जो रूप देखि जाणइ मोसो न को तीन भुंवन रे।।
अइसउ अभिमानी तेरी गत हुइगी कण रे ॥रजो० अंजुरी कउ नोर रहइ, कहउ केती वेर रे ।
तइसउ धन जोवन न, कोई ता मई फेर रे।जो० भजि भगवंत जोवन कउ लइ लाह रे,
जउ जिनहरख मुगतिकीचाहरे ॥३जो०॥