SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 419
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पद संग्रह (१८) जिन वीनति राग-रामगिरी ३४६ जिणंदराय हमकुं तारउ-तारउ । करुणासागर करुणा करिकर, भवजल पार उतारउ || १जि० ॥ दीनदयाल कृपाल कृपाकर, कूरम नइन निहारउ | भगतवछल भगतन कुं ऊपर, करत न काहे विचारउ || २जि० ॥ इतनी अरज करूं हूँ प्रभु सुं, पदकज थहं मत टारउ । कहड़ जिनहरख जगत के स्वांमी, आवागमण निवारण || ३ जि० ॥ (१६) जिन वीनति राग - रामगिरी · कृपानिधि अब मुझ महिर करीजइ । दीन दुखी प्रभु सेवक तोरउ, अपणुं करि जाणीजइ ॥ १०॥ भवसायर में बहु दुख पायउ, करुणा करि तारीजड़ । तुम्ह विण कुंण लहइ पर वेदन, उपगारी सलहीजइ ॥२कृ०॥ नईण सलूण सनमुख जोवउ, ज्युं जिनहरख पतीजइ । प्रभु सेवा फल इतनउ मार्ग, बोधि बीज मोहि दीजइ ||३०|| (२०) जिन वीनति राग - रामगिरी जगत प्रभु जगतन कउ उपगारी | अपणे दास धरे बड़कुंठ में, भव की पीर निवारी ॥ १० ॥
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy