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पद संग्रह
(१८) जिन वीनति
राग-रामगिरी
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जिणंदराय हमकुं तारउ-तारउ । करुणासागर करुणा करिकर, भवजल पार उतारउ || १जि० ॥ दीनदयाल कृपाल कृपाकर, कूरम नइन निहारउ | भगतवछल भगतन कुं ऊपर, करत न काहे विचारउ || २जि० ॥ इतनी अरज करूं हूँ प्रभु सुं, पदकज थहं मत टारउ । कहड़ जिनहरख जगत के स्वांमी, आवागमण निवारण || ३ जि० ॥ (१६) जिन वीनति
राग - रामगिरी
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कृपानिधि अब मुझ महिर करीजइ ।
दीन दुखी प्रभु सेवक तोरउ, अपणुं करि जाणीजइ ॥ १०॥ भवसायर में बहु दुख पायउ, करुणा करि तारीजड़ । तुम्ह विण कुंण लहइ पर वेदन, उपगारी सलहीजइ ॥२कृ०॥ नईण सलूण सनमुख जोवउ, ज्युं जिनहरख पतीजइ । प्रभु सेवा फल इतनउ मार्ग, बोधि बीज मोहि दीजइ ||३०||
(२०) जिन वीनति
राग - रामगिरी
जगत प्रभु जगतन
कउ उपगारी |
अपणे दास धरे बड़कुंठ में, भव की पीर निवारी ॥ १० ॥