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पद संग्रह
३४७ (१३) जिन पूजा
राग-वेलाउल जिनवर पूजउ मेरी माई, सकल मंगल सुखदाई ।जिन केसर चंदन अरगजइ, विधि सुं अंगीया वणाई ॥१जि०॥ कुसुममाल प्रभु के उर ठावउ, चितमइ धरि चतुराई । भाव भगति सुं जिनगुण गावर, नावे कुमणा काई ॥२दि०॥ सतर-भेद पूजा जिनवर की, गणधर देव बताई। द्रव्यत भावत के गुण लहीकइ, करि जिनहरख सदाई ॥३जि०॥
__ (१४) प्रभु भक्ति
राग-वेलाउल प्रभु पद-पंकज पायके, मन भमर लुभाणउ । सुंदर गुण मकरंद के, रसमड लपटाणउ ॥१०॥ राति दिवस मातउ रहइ, तिस भूख न लागइ । चरण-कमल की वासना, मोहउ अनुरागइ ॥२०॥ सुमनस अउर की सुरभता, फीकी करि जाणइ । रहइ जिनहरख उलासमइ, अविचल सुखमाणइ ॥३०॥
(१५) प्रभु भक्ति
राग-धन्यासिरी __ भविक मन कमल विबोध दिणंदा।
नृत्यति नईण चकोर चतुर द्वइ, निरख निरख मुखचंदा ॥१०॥