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श्री जिनहर्ष ग्रन्थावली नइंना नींद न भूख पियासा, देखण कुं तरसीजह । विकल होत इत उत भटकत हे, सुख दे के दुख लीजड् ॥रका०॥ स्त्यांम होत कंचण सी काया, निति आधीन रहीजइ । कहइ जिनहरख जाणि दुख कारण, सुगुरु वचन रस पीजइ ॥३का०॥
(११) महावीर गौतम
राग केदार हो वीर, काहे छह दिखायउ । हुँ तुझ सेवक परम भगत हूं, अविहड़ नेह लगायउ हो ॥१ची०॥ तइं जाणउ पासव पकरेगो, वासक ज्यो परचायउ। एक पखीकरी प्रीत परमगुरु, मैं यूँ ही दुख पायउ हो॥२वी०॥ निसनेही सूं नेह न कीजइ, उपसम मनमई आयउ । गौतम केवलज्ञान लघउ तर, गुण जिनहरखइं गायउ हो॥श्वी०॥
__(१२) जिन दर्शन
राग-रामगिरी सखी री आज सफल जमवारउ । प्रभु निरखे अज्ञान मिट्यु तम, भयउ अंतर उजुआरउ ॥१०॥ सुंदर मूरति सूरति अनुपम, देखि कुमति मति छारउ । समकित अपणु निर्मल करि कइ, शिव सुख सुचित धारउ ॥रस।। समता सागर गुणकउ आगर, लागत हे मोहि प्यारउ। हुँ जिनहरख हिया में राखु, साहिब मोहनगारउ ॥३साः