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श्री जिनहर्ष ग्रन्थावली गाज की आवाज सुणिकेइ, चित्त मांझि डराइ ।। २ पा० सबद चातकी जहर सुणिकै, जीउ निकस्यउ जाइ। नेमि विणि जिनहरख राजुल ज्यामिनो मुरझाइ ॥ ३ पा०
(६) राजुल विरह
राग-देवगंधार सखी री चंदन दुरि निवारि । मेरइ अंग आगि सउ लागत, खत उपरि मानु खार ॥१स०॥ कुसुम माल व्याल सी लागत, फीके सब सिणगार । चंद चंद्रिका मो न सुहावइ, जरि हइ अंग अपार ॥२स०। सेज निहेजी हुं दुःख पाऊं, सीतल पवन न डारि। पिय विण सुख जिनहरख सबइं दुख, कहिहइ राजुल नारि ॥३स०।
(७) राजुल विरह
राग-वेलाउल मो पइ कठिन वियोग की, सही जात न पीर । सखी री कोइ उपाय हइ, धरीये मन धीर ॥१मोपे।। भूख पिपासा सब गई, भयउ सिथल शरीर । विरह घाउ हियरउ फटइ, जइसई जूनउ चीर ॥रमो०॥ हूँ विरहिणि परवसि भई, जरी पेम जंजीर । राजुल जिनहरखइं मिले, भयउ सुख सुं सोर ॥३मो०॥