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। पद संग्रह (३) नेमि राजुल
राग-सोरठ नेमि काहे के दुख दीनउ हो। छोरि चले मोहि अहि कंचुरी ज्यं, कुण अवगुण मंड कीनउ हो॥१ने० तुमसु नेह पुरातन मेरउ, चरण मन लहइ लीनउ हो। हूं कंचण की मुंदरि तापरि, तुं तर अजब नगीनउ हो ॥ २ने० विरह संतावत निसि दिन मोकं, अंतर ताप पसीनउ हो। राजुल कहइ जिनहरख पियाके, गुणसुं दिल रहइ भीनउ हो ॥३ने०
(४) नेमि राजुल
राग-देवगधार पियाजी आइ मिलउ इक वेर । चरण-कमल की खिजमति करिहुं, होइ रहुंगी जेर ।। १पि० आइ छुरावर अपणी प्यारी, मदन लई हइ घेरि । आण तुम्हारी सिरपरि धरिहुं, ज्यं भालाकउ मेर ॥ २पि० मो वपरि कुं काहे मारण, झाली हइ समसेर । कहइ राजुल जिनहरख विरहिणी, चिहुं दिसी रही मग हेर ॥३पि०
(५) नेमि राजुल
राग-सोरठ पावस विरहिणी न सुहाइ । देखि विकटा घटा घन की, अंगमइ अकुलाइ ॥ १ पा० नीर धारा तीर लागइ, पीर तन न खमाइ।।