SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 412
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पद संग्रह (१) विमलाचल ऋषभदेव राग-वन्यासिरी लागइ लागइ हो विमलाचलनीकउ लागइ । जहां श्रीरिषभजिणंद विराजइ, मेट्यां भव दुख भाजइ हो।१ वि० साधु अनंत अन्त करि भव कं, सीधे सुणियत आगइ । नइंनन देखतहीं सब जनकड, हियरइ समकित जागड हो ॥ २वि० शिव सुख साधक हइ आराधक, निति निति नमीयइ रागइ । कर जोरी जिनहरख प्रभुपई, बोधि वीज फल मागइ हो ॥३वि० (२) विमलाचल यात्रा उत्सुकता राग-रामगिरी सखी री विमलाचल जांणु जईयइ । प्रथम नाथ जगनाथ की भावई, विधि सुं पूज रचईयइ । १स० मन, वच, काय पवित्र निज करिकइ, निति प्रति प्रभु कुं नईयइ । जाके दरसण पातक न रहे, वंछित फल पईयइ ॥ २ स० यु तीरथ समरथ तारण कुं, देखि खुसी मन हुईयइ । कहइ जिनहरख भेटि गिरिवर कुं, नरभव लाहउ लईयइ ॥ ३स०
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy