________________
३३६
श्री वीस विहरमाण जिनस्तवन श्री ईश्वर पनरमउ पवित्र, सोलमउ नेमिप्रभ सुचरित्र ॥४॥ सतरम वीरसेन वंदीयइ, अढारम महाभद्र सुख दीयइ । देवजसा जिन उगणीसमउ, अजितवीर्य बंदू वीसमउ ॥५॥ विचरइ विहरमाण ए वीस, महाविदेह माहे जगदीस । भव भव चरण सरण तेह तणा, ल्यु जिनहरख संदा भामणा॥६॥
श्री वीस विहरमाण जिन स्तवनं
ढाल || श्री नवकार जपउ मन रगइ || एहनी विहरमाण प्रणमु मन रंगइ, महाविदेह मझारि री माई । जंगम तीरथ धर्म कहता, समवसरण सुखकार री माई ॥१वि।। सीमंधर पहिलउ परमेसर, जगनायक जगदीस री माई। युगमंधर जगमई जयवंता, भेटुंते धन दीस री माई ॥२वि।। त्रीजउ बाहु जिणंद जुहारूं, पूगइ मननी आस री माई। भावइ स्वामि सुवाहु नमुनिति, महीयल महिमा जासरीमाई॥३॥ प्रात सुजात नमु जिन पंचम, पंचम गति दातार री माई । श्री स्वयंप्रभ समता सागर, जगगुरू जगदाधार री माई ॥४॥ रिखमानन आनन निरखंतां, भागइ कोडि कलेस री माई। 'अनंतवीर्य अरिहंत अतुल बल, कदि नयणे निरखेसि रीमाई ॥२॥ नवमउ श्रीमरप्रभ स्वामी, अतिसयवंत उदार री माई । श्रीविसाल सुविसाल त्रिजग जस,प्रणमइ सुरनर नारिरी माई॥६॥ इग्यारमउ वज्रधर महिमाधर, सेवइ इंद नरिंद री माई। चंद्रानन वारम चंद्रानन, परतखि सुरतरु कंद री माई ॥७वि।।