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जिनहर्ष ग्रन्थावली चंद्रबाहु चरणे चितलाऊं, पाउं शिव सुख जेस री माई। स्वामि भुजंगम जंगम तीरथ, धरीयइ तेह सुप्रेम री माई||CIE ईश्वर जगदीश्वर अपरंपर, अविचल तेज प्रताप री माई । सोलसमउ नेमप्रभ समरु, नासइ पाप सताप री माई ॥६॥ वीरसेन वंदु (दुख छंडे) आणंदु, मंडं शिवपुर वास री माई। महाभद्र अढारम जिनवर, आपइ लील विलास री माई ॥१०वि।। देवयसा सुदसा देखतां, जायइ भवना दुक्ख री माई, अजितवीय जित कर्म प्रबल दल, नित निरखीजइ सुख्य रीमाई।११ विहरमाण वीसे सुखदाई, विचरता विख्यात री माई। भविक लोक नइ धरम पमाडइ, कंचण वरण सुगात रीमाई ॥१२॥ लाख चउरासी पूरव आउ, धतुप पंचसय देह री माई । कर जोडी वंदु त्रिकरणसु,धरि जिनहरख सनेह री माई ॥१३वि।
जिन स्तवन भजि भजि रे मन तं दीनदयाल, पतित उधारण जन प्रतिपाल भि समरण करतां टूटइ पाप, सकल मिटइ भव भ्रमण संताप ॥१भा। तारणतरण हरण दुख कोड़ि, सुर नर नाग नमइ कर जोड़ि भी तुरत ऊतारइ करम कलंक, जामण मरण न होइ आतंक ॥रभ॥अपराधी ऊधरीया केइ, मुगति महल मां धरीया लेइ ।भा पाउ ग्रहइ रहइ जे प्रभु ओट, जमची अंग न लागइ चोट ॥३भ।। आरति भंजण आपो आप, धणी सदाई करइ धणीयाप भ! कहइ जिनहरख करण वगसीस, जगनायक जय जय जगदीस ।४भ