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श्री जिनहर्ष ग्रन्थावली कुमती ना मद गंजइ, कुमति कदाग्रह भंजइ । धरमी ना मन ठारइ, संसय दृरि निवारइ ॥८॥ नयणे जेह निहालइ, ते निज पातक गालइ । धन धन ते नर नारी, जे भेटइ गुण धारी ॥६॥ नामइ नव निधि लहीयइ, दरसण देखी गह गहीयइ । जनम सफल निज कीजइ, मुगति तणा फल लीजइ ॥१०॥ इम प्रभुना गुण गाया, सुपना मां सुख पाया। दरसण घउ प्रभु मुझनइ, परतखि कहुँ छु ई तुझनइ ॥११॥ सीमंधर जिनराया, प्रणमं प्रहसम पाया। मुझ नइ सेवक थापर, प्रभुजी निज पद आपउ ॥१२॥ श्रेयांसराय सल्हार, सत्यकी उअर अवतार । लंछण वृपम सुहावइ, गुण जिनहरख सुं गावइ ॥१३॥
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वीस विहरमाण नाम स्तवन सीमंधर पहिलउ जिनराय, जुगमंधर वीजउ कहवाय । जीजउ चंदू बाहु जिणद, चउथउ स्वामि सुबाहु दिणंद ॥१॥ पंचम जिनवर नमुं सुजात, स्वयंप्रभ छठउ त्रिजग विख्यात । रिखमानन नमीयइ सातमउ, अनंतवीर्य अरिहंत आठमउ॥२॥ सूरप्रभ नवम सिरदार, श्री विसाल दशमउ गुणधार। वज्रधर प्रणमुं इग्यारमउ, चतुर चंद्रानन जिन वारमउ ॥३॥ चंद्रबाहु नमिसुं तेरमउ, श्री भुजंग जपिसुं चउदमउ ।