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________________ श्री पार्श्वनाथ दशभव गर्भित स्तवन साचौरे संमेतसिखर, पोसी वंदेसर, सोझत नै भीमालियो ए चवलेर चवीजै । कापरहेडे, मेड़ते ए दिनप्रति प्रणमीज || ६ || कलस हम अठ्ठोत्तर से गांम, नयर पुर ठाम । थुणिया त्रिकरण सुध, पास जिणेसर नाम ॥ गणिवर श्रीसोम सुखाकर पूरो आस । जिनहरख करे कर जोड़ि ए अरदास ॥ ॥ इति अट्टोत्तर सौ स्थान नाम गर्भित पार्श्वनाथ स्तवन सम्पूर्ण ॥ - २६७ श्री पार्श्वनाथ दशभव गर्भित स्तवन ढाल || लवेलानी ॥ पोतनपुर रलीयामणु रे लाल, सुरपुर नुं अवतार | सुविचारी रे अरविंद राजा गुण निलउ रे लाल, राज्य करइ गुणधार ॥ सु० १पो॥ निज परजा पालइ सुखई रे लाल, सहुं कोनी करे सार । सु । मरुभूति तिहां ब्राह्मण बसे रे लाल, राजा नउ अधिकार ।। सु२पो।। कपट रहित धरमातमा रे लाल, जेहना सरल परणाम | सु० । उपगारी सह लोक नइ रे लाल, सहु विद्या गुण धाम || सु३पो|| ' सुख भोगवह गृहवास ना रे लाल, निज नारी संयोग | सु० । आउख पूरण करी रे लाल, ते पहुतउ परलोग || सु४पो ॥ बीजइ भव हस्ती थयउ रे लाल, वारू लक्षणवंत ||
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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