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श्री जिनहर्ष ग्रन्थावली ___ रूप अति रलीयामणु रे लाल, वन माहे विलसंत ॥ सु०५ पो।।
अरविंद नृप संध्या समइ रे लाल, देखी अभ्र स्वरूप । सु० । वैराग्यइ दीक्षा ग्रही रे लाल, पंच महाव्रत रूप ।।सुपो।। समेतशिखर यात्रा भणी रे लाल, चल्या अरविंद साध सु। सर तीरई काउसग कयु रे लाल, धरतउ चित्त समाधि ।।सुपो।।
ढाल २ ॥ कता मोनइ डूगरीयउ देखालि रे ॥ एहनी मरूभूति नउ जीव हाथीयउ, पीवा आव्यं सर नीर रे । संघ निहाली घj कोपीयउ, नाठा सहु धयें नही धीर रे ॥८म।। राजरिपि अरविंद मुनिवरु, अवधिज्ञानी अणगार रे। हस्ती प्रत प्रतिवोलीयउ, देइ उपदेश विचार रे॥६म।। गज भणी ततखिण ऊपनउ, जातीसमरण सुभ ज्ञान रे । श्रावक व्रत मुनिवर कन्हइ, आदर्या देई बहुमान रे ॥१०म।। साधु अरविंद ना पाय नमी, गज गयउ आपणी ठाम रे । तिर्यच पणे व्रत पालीया, रिदय धरतं मुनि नाम रे ॥११म।। काल कीधउ तिणि गजपति, सहस्रारइ ऊपनु देव रे। तृतीय भव एह जाणउ सही, सुर सुख भोगवइ हेव रे ॥१२म।। गज तणउ जीव तिहां श्री चची, खेचर किरणवेग नाम रे। पुत्र थयउ रे राजा तणड, रूप अभिनव जाणे काम रे॥१३म।।
- ढाल ३ || कंता तंबाखू परिहरउ । एहनी मंदिर लावण्य गुण तणउ, नारि परिणी सुखकार । मोरा लाल राज्य पाम्युं निज वाप न, भोगवइ विषय अपार ॥मो१४मी।