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श्री जिनहर्ष ग्रन्थावली
पिणि पोतड़ मुझ पातक घृणा, किम थायड़ हो सेवा जगदीस । ४कं । निसनेही सुं लागउ नेहलउ, झूरि मरीयह हो इमही एकंग की दीपक मन नह जाणड़ नही, पड़ि पड़ि नड़ हो मांहि मरड़ पतंग | ५कं । साहिब सेवकनी चाकरी, नवि जाणड़ हो मन मांहि । कं । बगसीस किसी परि तर करइ, किम थायड़ हो सफली मन चाहि । ६क पिणि थाय जे भारी खमा, सहुकोनी हो पूरवइ सन आस | कं अधिका ओछा नवि लेखवह, तुझ सारिखा हो उपगारी पास ॥ ७कं ।। अपराधी हुँ प्रभु ताहरउ, मुझ मांहे हो छइ अवगुण कोडि | कं अवगुण जोई अवहीलतां, मोटा नड़ हो छह मोटी खोडि ॥ ८कं ॥ तुमनइ स्युं कहीयइ वलि वलि, सहु बाते हो तुम्हें जाण प्रवीण की जिनहरख मनोरथ पूरवउ, तुम चरणे हो मनड़उ लयलीण ॥६कं ॥ श्री नारंगपुर पार्श्वनाथ स्तवन
राग - वेलाउल
श्री नारंगपुर वर पाशजी, म्हारी चीनतड़ी अवधारि । भव दुख भांजउ माहरा, तूं तउ पर दुख भंजणहार हो || १ श्री || हां जी मूरति मां काई मोहणीजी, नयण अधिक सुहाइ । साहिब तुझ दीठां पछ, कोइ वीजउ नावइ दाइ हो ||२ श्री || हां जी पोताना जाणी करी जी, निशि दिन राखड़ पासि । सकल मनोरथ पूरवर, तेहना थई रहीये दासरे हो || ३ श्री || हां जी जे दुख भांज आपणाजी, तेहने कहीये दुक्ख । निसनेही निरमोहीयां, तेस्युं ओलइ कहउ सुक्ख हो || श्री ||