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________________ २६४२ श्री नारंगपुर पार्श्वनाथ स्तवन हां जी उत्तम नी सेवा कीयांजी, उत्तम गुण धइ तेह । पारस संगति लोहडौ. थायड कंचण गण गेह हो ॥५श्री। हां जी तुझ चरणे ई आवीयउ जी, निजे गुण द्यउ भगवंत । माहरो आहीज वीनती, वार वार करूं गुणवंत हो ॥६श्री।। हां जी परउपगारी तूं सहीजी, वामा सुत विख्यात । आशा पूरउ माहरी, जिनहरख कहइ ए बात हो । ७श्री ।। श्री नारंगपुर पार्श्वनाथ स्तवन ढाल || एसा मेरा दिल लागा रे जिन्हा रे म्हारा लाल लोभीडा सुजाण एसा मेरा दिल लागा ।। एहनी मूरति तेरी मोहनगारी, देख्यां होत उलास । चित चरण मोही रह्यउ रे, पलकन छोडूं तोरउ पास ॥१॥ तोसुं मेरा दिल लागा राजिंद म्हारे मोरा लाल नारंगपुर प्रभु पास। तो० मे० । हुँ सेवक तुं साहिब मेरा, तूं मेरा सुलताण । अंतरजामी आतमारे, तुं मेरा दिल दा दीवाण ॥रतो॥ हित सुं हीयड़ा वीचि रहाउं, प्रभु गुण मुगतामाल । प्रभु कोरती गाउं सदा रे, पामुसुख सुविसाल ॥३तो०॥ किसहीकी न धरूं तमा, किसही न नामुं सीस । आस तुम्हारी हूं धरूं रे, करि अविचल बगसीस ॥४तो०॥ तिणिकी सेवा कीजीयइ, जिण कइ मन मइसाच । झूठे सु क्यां राचीयइ रे, परिहरियइ ज्यू काच ॥श्तो०॥ .
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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