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श्री जिनहर्ष ग्रन्थावली सुगुण साहेब मैं ओलख्यो ललना, लल्लाहो भयभंजन भगवंत । सरसं मेरू पटंतरो ललना, लल्लाहो आप कनै अरिहंत वा०२२ काज नहीं राज रिद्धि सं ललना, लल्लाहो रमणी भोग विलास ॥ निज पद केरी चाकरी ललना. लल्लाहो देज्यो करूं अरदास २३ कर जोड़ी करूं वीनती ललना, लल्लाहो लेखवीजो मुझ दास । नव निधि पामी एतले ललना, लल्लाहो सफल हुसे मुझ आस] २४ कलस-इम पास जिनवर सकल सुखकर, श्री वाडीपुर मंडणो । मैं शाह-पाडे थुण्यौ भावे, दुरित दुःख विहंडणो ॥ अश्वसेन नंदन मात वामा, उदर हंस विराज ए । जिनहर्ष पास जिणंद जगगुरू, भव-समुद्र जिहाज ए ॥ २५ ॥
॥ इति ॥ श्री वाडी पार्श्वनाथ स्तवन
ढाल || वीछीया नी। मन मोहन मूरति जोवतां, मुझ नयणे त्रिपति न थाइ रे । जाणं आठ पहुर ऊभउ थकउ, कर जोड़ी सेवं पाय रे ॥१॥ वाल्हउ लागइ वाड़ी पासजी, पाटण मां सोहइ अजीत रे।। हीयड़उ हीसइ मिलिवा भणी, काइ पइलांतर नी प्रीति रे.।। 'निसि दिन माहरा मन मां वसइ, वाल्हेसर ताहरउ नाम ।' एहीज मुझनइ आधार छइ, जपतउ रहुं आठे जामरे ॥ ३ वा ॥ भवसायर मां भमतां थका, मई तउ पाम्यां दुक्ख अपार रे ।