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________________ पार्श्वनाथ स्तवन २८१ सेव्या देव घणो घणा जी, पिण न सर्यो को काज जी ।के। चरण सरण हिवै ताहरै जी, मैं कीधा महाराज जी के०॥१३ मन ना तन ना दुख गया जी, प्रभु मुझ साम्हो जोइ जी के० भव भावठ भंजन भणीजी, तुझ विण अवर न कोइ जी ॥ के०१४ तुझ सेवा थी पामिये जी, सुख सम्पति धन राश जी। परम शिव सुख पामिये जी, एक पंथ दोई काज जी के०१५. || ढाल ४ माखीना गीतनी ॥ म्हारां साहिब राहुँ चरण न मेल्डं, मैं पाम्या हिव नीठ जी । भव मांहि भमता बहु दुख खमतां, चिरकाले प्रभु दीठ जीवन जी।१६ "श्रीवाड़ीपुर पास सुहावो, पास सुहावतो पूजन आवो केसर चदनमेलि कस्तुरी घनसार कुसुम सं, भाव सुरंगौ भेलि, जोवन जी०।श्री०१७ व्हाला नौ दर्शन देखतां, जे सुख हिये होई जीवन जी। ते जाणे मुझ आतमां, अवर न जाणे कोई जीवन जी ॥श्री०१८ मुझ मन साहिबजी सं लोनो, चोल मजीठौ रंग जीवन जी। उतारयो उतरे नहीं, किमहिं अंगो अंग जीवन जी ॥श्री०१६॥ ढाल ५ ॥ हरणों जव चरे ललना ।। एहनी ॥ एतला दिवस भूलो भम्यो ललना, लला हो तुझ विन श्री जिनराय। वाड़ी पास जी ललना। ..निगुण साहिव सेव्या घणा ललना, लला हो आस न पूगी कांय॥२० दूर टली हिव मूढ़ता ललना, लला हो दूर टल्यो मिथ्यात । ज्ञान दीपक पूगो हिये ललना, लला हो जाणीभांति न भांति ॥२१
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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