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जिनहर्प ग्रन्थावली तो जग मगे जस भाणु हो व्हाला, ज्योति जगामग तेहनी ।म्हा लाल
ढाल | (२) नागा किसुनपुरी, तुम बिन मढिया उजर परी । एहवो पास जिनेसर देव, मन शुद्ध कीजै एहनी सेव । मीठी अमृत जिसी, प्रभुजी छवि मोरे मनडे वसी । अवर गमे नहीं मुझने किसी, मीठी अमृत जिसी । नील कमल दल कोमल काय, विषहर लंछन सेवे पाय ॥६॥मी०॥ अणियाला देखी नैण सुरंग, हारि गया वन मांहि कुरंग ।मी०१ जिम जिम देखं प्रभुजी न रूप, तिमतिम हिबडे हर्ष अनूप । मी०१७ प्रभुजी ने चरणे लागी रहै, ते तो मोज सही सुं लहै ।। मी० ॥ मोटा मूके नहींय निरास, दास तणी पूरे मन आस |८ मी० ॥ सेवा कीजै गुणवंत तणी, सो मनवंछित दये ते भणी । मी०। सव सगला में वाधै लाज, सोम नजरि कर सारे काज ॥मी०॥ साहिबजी जो सुनिजर होय, अन्तर दुख व्याप नहीं कोय मी. सामो जोवे थई खुशियाल, तौ खिण मांहि करे निहाल॥१०मी० ढाल ।। (३) केसरिया मारु म्हाने सालू लाज्यो जी सागानेर नो जी
चीणपुरानी चीर जी। केसरीया-एहनी । चरणे चित लागी रह्यो जी, जिम मधुकर अरविन्द । -केसरिया साहित्र म्हाने मौज देजो जी। पलक रहे नहीं वेगलौजी, मोद्यो गुण मकरन्द जी के० ॥११॥ रात दिवस हियडे बसोजी, जिम लोभी धन रासि जी के०। परतिख- काईक मोहनी जी, दीसे छै तुझ पास जी के०१२॥