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श्री वाडी पार्श्वनाथ स्तवन
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आव्युं सरणइ हूँ ताहरइ, मुझ नह हिवह दुत्तर तारि रे ||४ वा || उपगारी जे भारी खमा, गरुआ जे गुणे गंभीर रे । ते साथ करीय प्रीतड़ी, दुख भांजे आवड़ भीर रे ।। ५ वा० ॥ ताहरी समवड़ी जे कीजीयड़, तेहवर तर कोई न दीठ रे । तिणि कारणि तूं मुझ वालहु, रंग लागउ चोल मजीठ रे ||६|| पोतानी कीरति राखिवा, वली राखेवा निज लाज रे । 'जिनहरख' मया करी मुझ भणी, आपउ शिवपुर नउ राज रे ||७|| श्री वाडी पार्श्वनाथ स्तवनं
ढाल || श्राजनइ वधावर हे सहीयर माहरइ || एहनी
आजनइ मई भेट्या हो बाड़ीपासजी, शिवरमणी सिणगार । सुंदर सोहइ हो मूरति प्रभु तणी, दीठां हरख अपार ॥ १ ॥ सदा सुरंगा हो मुलकड़ीया हसइ, विकसित बदन खुस्याल । वेपरवाही हो साहिब सेवतां, खिणि मां करइ निहाल ॥ २० ॥ हरि करि निरखं हो मूरति लोयणे, रोम रोम उलसंत । प्रीति पुराणी हो आज प्रगट थइ, जाणं छं एकत || ३ आ० ॥ कहीयड़ड़ ऊमाहउ हो मिलिवा अति घणउ, चरणे लागउ चीत । मुखड़उ देखेवा हे आखां अलजई, आ काइ नवली रीति ||४|| देव घणा ही हो दीठा देवले, मुद्रा जेहनी रूद्र ।
ए जिनवर नी हो मुद्रा जिन कन्हइ, सीतल सरल अक्षुद्र || ५ || एकण दीठा हो तन मन ऊलसह, एक दीठा न सुहाइ ।