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________________ २७८ जिनहर्ष ग्रंथावली । परतखि परता पूरवइ, सेवक जन नइ साधारइ रे। सुरतरु सुरमणि सारिखउ, इणि विषमइ पंचम आरइ रे ॥२॥ वाट विषम विषमी धरा, रिण विषम घणउ अवगाही रे। जात्र करण जगदीसनी, आवइ संघ हीयड़इ ऊमाही रे ॥३॥ प्रभु जात्रा भूला पड़इ, जे विपमी वाट विचालइ रे । नीलड़इ अस्व चड़ी करी, सेवक नइ बाट दिखालइ रे ॥४गु।। अष्ट महाभय उपसमइ, प्रभु नामइ पाप पुलायइ रे । जपतां नाम जिणंदनौ, जिनहरख सदा सुख थायइ रे ॥श्गु॥ श्री गौड़ी पार्श्वनाथ स्तवन || ढाल-आसकरण अमोपाल हारे आसकरण अमीपाल ___ शत्रु जइ जात्रा करइ रे, करइ रे ॥ एहनो ॥ श्री गउड़ीचा पास हारे, श्री गउड़ीचा अरज सुणि माहरी रे।अरजा कीरति त्रिभुवन मांहि हारे की०, अमूलिक ताहरी रे ताहरी रे॥ दुनियां मइ दीवाण हारे दु०, तुम्हीणउ दोपतउ रेतु०दीपतउ रे तु० जालिम अरियण दूठ हारे जा०, जोरावर जीपतउ रे जो०२॥ १॥ आवइ ताहरी जात्र हारे आ०, धणा संघ ऊमहीरे ऊमहीरे । केसर चंदन पूज हारे के०, रचावइ गहगही रे र० गहगही रे ॥ नृत्य करइ मन रंग हारे नृ०, सुरंगी गोरीयारे सु । वारु वेस वणाइ हां रे वा०, गुणा री ओरीयां रे । २॥२॥ वाजइ ढोल निसाण हारे वा०, दमामा दुड़वड़ीरे द० २। मादल ना धौंकार हारे मा०, नफेरी चड़वडी रे न० ॥
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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