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________________ २७७ श्री गौड़ी पार्श्वनाथ स्तवन ते रंग हो ते रंग भवे न उतरइ जी ॥३॥ आणसनेही हो आगलि हीयड़उ खोली नइ । कहिस्यु हो कहिस्', सुख दुख केरी वातड़ी जी ॥ वे कर जोडी हुतउ आगलि ऊभउ । रहिस्यु हो रहिस्यु लय लाई वासर रातड़ी जी ॥४॥ . धन धन जे प्रभु नइ रहइ पासइ । धन धन हो धन धन जे ओलग करइ जी ॥ भव भव ना ते तउ पाप पखालइ । वंछित हो वंछित ते कमला वरइ जी ॥५॥ गुण रतनाकर ठाकुर गड़ड़ी विराजइ।। गाजइ हो गाजइ महिमा दह दिशि जी । वंछित पूरइ साहिब संकट चूरइ । दरसण हो दरसण देखी हीयड़उ ऊलसइ जी ॥६॥ शिव सुख आपउ मुझ नइ पास जिणेसर । बीजउ हो बीजउ क्यं मांगु नही जी ॥ इम जिनहरख कहइ मन रंगइ। 'कीजइ हो कीजइ कबउ इतरउ सही जी ॥७॥ . श्री गउड़ी पार्श्वनाथ स्तवनं ___ दाल || पास जिणद जुहारीयइ ॥ एहनी गुणनिधि गउड़ी पास जी, मनमोहन महिमा निवासो रे । सुर नर नारी सुरेसरु, गावइं भावइंजस वासो रे ॥१॥
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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