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वधा
श्री जिनहर्ष ग्रन्थावली वाट विपम बल नहीं पगे वा०, तिणि हे न सकु आई रे॥६ श्री।। मुझ नइ दरसण दोहिलउ वा०, ताहार श्री जिनराय रेवा०। एतला दिन आव्यउ नही वा०, तर कोइक अन्तराय रे॥वा०७ श्री। तुमनइ स्यं कहीयइ घणउ वा०, तुमे छड जाण प्रवीण रे ।वा। यात्र सफल मुझ मानिज्यो वा०, इहाथी चरणं लीण वा०८ श्री। हुँ सेवक छु ताहरउ वा०, जाणेज्यो निरधार रेवा। देज्यो निज पद चाकरी वा०, कहइ जिनहरख विचार रेवाश्री।
श्री गउडी पार्श्वनाथ स्तवन ढाल || पहिलउ वधावउ म्हारइ सुसरा रइ हाइप्यो । एहनी ते दिन गिणिस्य हुतउ लेखइ सुलेखइ, जिणि दिन हो जिण दिन देखिसि सूरति ताहरी जी। जोइ रहिस्त्यु हुतउ सनमुख प्रभुनइ । थास्यइ हो थास्यइ आसड़ली सफली माहरी जी ॥१॥ भाव धरीनइ प्रभुजी ना गुण गास्युं । पावन हो पावन करिस्यं माहरी जीभड़ी जी ॥ चैत्यवंदन करि तवन कहीनइ । भावइ हो, भावइ जुहारीसि धन धन ते घड़ी जी ॥२॥ हीयड़इ राखिसि हित सुं नाम तुम्हारउ । नवसर हो नवसर हार तणी परई जी ।। चोल सुरंगी जिम मीजी भेदाणी।