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________________ फलौधी पार्श्वनाथ स्तवन २६२ मांण मलण दुख दलण, धरण सुमता धुर धारण । मयण महण बल मथण, विधन धन लता विडारण । सामि सरण रस रमण, नमण ग्रभवास निवारण ।। दोष दमण अघ गमण, करत जस कीरति कारण । दीवाण जांण वंछित दीयण, रयण दीह जपि जपि रसण । 'जिणहरख' भुवण फलवद्धि जिन, तरण तेज दीपंत तण ॥३६॥ सकल ज्योति सुविसाल, भृकुटि धनु लोयण भिंभल । भाण तपै जिम भाल, नाक सिख दीख निरंमल । अदभुत रूप असंभ, पार कोई कहत न पावै । उत्पति लहे न आदि, ध्यान धर सहु को ध्यावे । श्रीसोम सुगुरु सुपसायलै, प्रणमतां प्रभु पय कमल । जिनहर्ष एम जंपै सुजस, श्री फलवद्धि नायक सकल ॥ ४० ॥ श्री पार्श्वनाथ स्तुति श्री फलवद्धीयपाश्व स्तवन ढाल-गौडीचा दरसण दीजे आपणो हूं वारी, महिर करी महाराज रे हूं वारी लाल । श्रीफलवधिपुर पासजी हूं वारी, लाख वधारण लाज रे हूं वारी लाल इतरा दिन लग हूं भम्यौ हूं वारी, न लह्यौ ताहरो भेद रेहूंवारी भेद लघउ हिव ताहरउ हूं वारी, मन मै थयौ उमेदरे हूंवारी। तो विण किण ही और सुं हूँ वारी, न मले माहरौ चीत रे हूँ वारी भमरो परिहर केतकी हूँ वारी, जिणसु वाधे प्रीति रे ।हूँ वारी २ अण दीठा ही मन गमै हुँ, ज्यां सुं प्रीति अपार रे, हुँ।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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